मरकच्चो। प्रखंड के मरकचो, जामु, डूमरडीहा, नई टांड, विचरिया, नावाडीह 1, बरवाडीह, खेशमी, देवीपुर, राजा रायडीह, नावाडीह 2, पपलो समेत कई गांव के दुर्गा मंडपों में शारदीय दुर्गा पूजा को लेकर माहौल भक्तिमय हो गया है। नवरात्र के आठवें दिन शनिवार को मरकच्चो दुर्गा मंडप समेत प्रखंड के विभिन्न गांवों में दुर्गा मंडपों एवं घरों में माता के आठवें स्वरूप मां महागौरी माता की पूजा-अर्चना विधि-विधान व मंत्रोच्चारण के साथ किया गया। इस संबंध में मरकच्चो दुर्गा मंडप में बनारस से पधारे पुजारी विनय कुमार पांडे ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि नवरात्रि के आठवें दिन यानी कि महाअष्टमी को कन्या पूजन से पहले महागौरी की पूजा का विधान है। महागौरी की पूजा अत्यंत कल्याणकारी और मंगलकारी है। मान्यता है कि सच्चे मन से अगर महागौरी को पूजा जाए तो सभी संचित पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि महागौरी को लेकर दो पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार करते हैं और उनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं। ऐसा करने से देवी अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं। तभी से उनका नाम गौरी पड़ गया। वहीं दूसरी कथा के अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था। वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी ऊमा तपस्या कर रही थी। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। मां ने उसे अपना वाहन बना लिया क्योंकि एक तरह से उसने भी तपस्या की थी।