नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिए जाने के बाद नए संसद भवन के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। दरअसल केंद्र सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को कई याचिकाकर्ताओं ने अदालत में चुनौती दी थी। इस पर सरकार का कहना था कि बदलती जरूरतों के हिसाब से मौजूदा संसद भवन और मंत्रालय अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। फिलहाल सभी मंत्रालय कई अलग-अलग इमारतों में हैं और अधिकारियों को एक मंत्रालय से दूसरे में जाने के लिए वाहनों का इस्तेमाल करना पड़ता है।
कुछ मंत्रालयों को किराया देने में ही प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं इसलिए यह कहना सही नहीं है कि सेंट्रल विस्टा में सरकारी धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि धन की बर्बादी रोकने के लिए यह परियोजना जरूरी है। फिलहाल ये मंत्रालय एक-दूसरे से दूर 47 इमारतों से चल रहे हैं, जबकि सेंट्रल विस्टा में एक दूसरे से जुड़ी 10 इमारतों में ही 51 मंत्रालय बनाए जाएंगे और इन्हें नजदीकी मेट्रो स्टेशन से जोड़ने के लिए भूमिगत मार्ग भी बनाया जाएगा।
वर्ष 2026 में देश में लोकसभा सीटों के परिसीमन का कार्य होना है, जिसके बाद लोकसभा में सांसदों की संख्या 545 से बढ़कर 700 से ज्यादा हो सकती है। इसी प्रकार राज्यसभा की सीटें भी बढ़ सकती हैं। मौजूदा लोकसभा में इतने सांसदों के बैठने की व्यवस्था किया जाना असंभव है। ऐसे में समझा जा सकता है कि भविष्य की इन जरूरतों को पूरा करने के लिए नया संसद भवन कितना जरूरी है। नए संसद परिसर में 888 सीटों वाली लोकसभा, 384 सीटों वाली राज्यसभा और 1224 सीटों वाला सेंट्रल हॉल बनाया जाएगा। ऐसे में संसद की संयुक्त बैठक के दौरान सांसदों को अलग से कुर्सी लगाकर बैठाने की जरूरत खत्म हो जाएगी। अभी प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के निवास स्थान राष्ट्रपति भवन से दूर हैं, लेकिन नए प्रोजेक्ट में इनके नए निवास भी राष्ट्रपति भवन के नजदीक ही बनाए जाएंगे।