नई दिल्ली । पहले अंतरिक्ष यात्री के तौर पर स्कवाड्रन लीडर राकेश शर्मा का नाम कभी कोई नहीं भूल सकता है। 80 के दशक में जब राकेश शर्मा में बादलों को चीरते हुए अंतरिक्ष की तरफ बढ़े तो करोड़ों भारतीयों की दुआएं उनके साथ थीं। उस वक्त उनके साथ एक और नाम की भी चर्चा जोरों पर होती थी। ये नाम रवीश मल्होत्रा का था। यूं तो ये दोनों ही भारतीय वायु सेना के अनुभवी और जांबाज पायलट थे लेकिन अंतरिक्ष में जाने की यदि बात करें तो इसमें राकेश शर्मा उनसे आगे निकल गए थे। ये हर भारतीय के लिए गर्व का पल था।
सारे जहां से अच्छा
उस दौर में अखबार से लेकर मैग्जीन तक में राकेश शर्मा के बारे में लिखा जाता था। उन्होंने अंतरिक्ष में सात दिन बिताए थे। एक बार जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसे दिखाई देता है तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा- ‘सारे जहां से अच्छा’। आज उन्हीं राकेश शर्मा का जन्मदिन है। राकेश शर्मा के अंतरिक्ष अभियान को यूं तो आज 36 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उस दौर को देखने वालों के जहन में उनका चेहरा आज भी पहले की ही तरह है।
ली दो साल की कड़ी ट्रेनिंग
इस बात की जानकारी बेहद कम ही लोगों को पता है कि जब उनका नाम अंतरिक्ष यात्री के तौर पर फाइनल हुआ था और वो मास्को में यूरी गागरिन स्पेस सेंटर में अपनी ट्रेनिंग ले रहे थे तभी उनकी 6 वर्षीय बेटी का निधन हो गया था। ये वक्त उनके लिए काफी भारी भी था। लेकिन उन्होंने हिम्मत से इस पल का सामना किया और अपने कदमों को डगमगाने नहीं दिया। उनके ऊपर करोड़ों भारतीयों की उम्मीदें टिकी थीं। उन्होंने स्पेस में जाने से पहले करीब दो वर्ष कड़ी ट्रेनिंग ली थी। दो वर्ष के बाद वो पल आया जब 3 अप्रैल 1984 को सोवियत यान सुयोज टी-11 रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उन्हें लेकर बादलों को चीरता हुआ अंतरिक्ष की तरफ बढ़ चला।
उस वक्त टीवी की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं थी। इसके बाद भी सभी देशवासी उस पल को महसूस कर सकते थे। सभी की सांसें रुकी हुई थीं। सभी समाचारों के जरिए जानना चाहते थे कि आखिर क्या हुआ। फिर ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के जरिए जब लोगों को इस बारे में पता चला कि वो सकुशल अंतरिक्ष में पहुंच गए हैं तो देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में सेल्यूत 7 स्पेस स्टेशन में बिताए थे। अंतरिक्ष में हर रोज 10 मिनट योगा किया।
हीरो ऑफ सोवियत यूनियन
जब वो धरती पर वापस लौटे तो एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने उन यादगार पलों के बारे में दुनिया को बताया। भारत पहुंचने पर भी उनका जोरदार स्वागत हुआ। इस एतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के बाद उन्हें भारत सरकार ने अशोक चक्र से सम्मानित किया। सोवियत यूनियन ने उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ के पुरस्कार से नवाजा था।
चीफ टेस्ट पायलट
भारतीय वायुसेना से 1987 में बतौर विंग कमांडर रिटायर होने के बाद वो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स में चीफ टेस्ट पायलट बने। एक बार टेस्ट फ्लाईंग के दौरान उनका विमान क्रैश हो गया था जिसमें वो बाल-बाल बचे थे। आपको बता दें कि राकेश का जन्म 13 जनवरी 1949 को पटियाला में हुआ था। हैदराबाद में उनकी पढ़ाई लिखाई हुई। उनका लंबा बेंगलुरु में भी काफी लंबा समय बीता। वर्तमान में वो तमिलनाडु के कुन्नूर में रहते हैं और बेंगलुरु की एक कंपनी कैडिला लैब्स में नान एग्जीक्यूटिव चेयरमैन भी हैं।