बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की प्रेरणा स्रोत है नीमका की बेटी वीरांगना सुनीता नागर बस्ट्टा

फरीदाबाद। सरकार द्वारा जारी बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की प्रेरणा की स्रोत है स्थानीय उपमंडल के गांव नीमका की बेटी वीरांगना सुनीता नागर बस्ट्टा । उनको प्रदेश में सरकार द्वारा जारी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का सर्वोत्तम दर्जा दिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जी हाँ वीरांगना सुनीता नागर ने वह करके दिखाया है जो कि एक प्रेरणा स्रोत मिशाल है। वीरांगना सुनीता नागर ने वह करके दिखाया है जो कि जिला फरीदाबाद व पलवल में तो मिसाल है ही हो सकता है पूरे हरियाणा प्रदेश में ही एक मिसाल हो। वीरांगना सुनीता नागर बस्ट्टा ने बातचीत में बताया कि वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के पानीपत जिला से बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की शुरुआत के समय से ही मैने बड़ा गर्व महसूस किया कि पहली बार देश और प्रदेश में सरकारों ने बेटियों की शिक्षा तथा अन्य सामाजिक सरोकारों के उत्थान के लिए कार्य शुरू किया गया। जो आज भी निरन्तरता के साथ महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चलाया जा रहा है। वीरांगना सुनीता नागर के पति शहीद रामवीर सिंह कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में देश के नाम अपनी शहादत कर गए थे। वीरांगना सुनीता नागर ने शहीद रामवीर सिंह की कही हुई बातों को मूर्त रूप देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को एमबीबीएस/ डॉक्टर बना कर एक मिसाल कायम की है। वीरांगना सुनीता नागर ने अतीत की बातों को याद करते हुए बताया कि मेरे पति शहीद रामवीर सिंह कि एक ही महत्वाकांक्षा थी कि उनकी बेटियां डॉक्टर बनें और अच्छी शिक्षित होकर पूरे समाज में अपना, अपने माता पिता, परिवार, गांव, जिला, और प्रदेश का नाम रोशन करें। वीरांगना सुनीता नागर ने बताया कि शहीद रामवीर सिंह ने पहली बेटी शालिनी बस्ट्टा का जन्म बेटे के रूप में सामाजिक सरोकार के साथ मनाया था। वे शिक्षा के बड़े प्रेमी थे। इसी प्रकार कुछ वर्षों बाद जब दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब भी उन्होंने घर में हर्ष और उल्लास के साथ बेटी रश्मि बस्ट्टा का जन्मदिन उत्साह पूर्वक मनाया था। उन्होंने बताया कि शहीद रामवीर सिंह बस्ट्टा एक ही बात कहते थे, कि मेरी बेटियों की पढ़ाई ऐसी हो इसमें समाज, परिवार, गांव, प्रदेश और देश का नाम रोशन हो और समाज के लोगों को प्रेरणा मिले। वीरांगना ने शहीद रामबीर सिंह की कारगिल युद्ध से कुछ दिन पहले की छुट्टियों की यादें ताजा करते हुए बताया कि रामवीर सिंह एक ही बात कहते थे,कि सुनीता बेटियों की पढ़ाई में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा। मैं एक फौजी हूं। जिस प्रकार एक फौजी देश के लिए अपनी जान कुर्बान करता है। उसी प्रकार तू भी अपनी बेटियों की पढ़ाई के लिए भी जी जान लगा देना। परंतु विधाता तो को तो कुछ और ही मंजूर था। मुझे क्या पता था कि रामबीर ये ड्यूटी मुझे सौंप कर देश पर अपनी जान कुर्बान करेगा। उसके बाद मेरा पति रामबीर छूट्टिया काट कर अपनी ड्यूटी पर चला गया और वहां कारगिल युद्ध में देश के नाम अपनी शहादत कर गया।
सुनीता नागर ने बताया कि उस टाइम मेरी उम्र मात्र 24/25 साल की थी। मेरी दो बेटियां थी, बड़ी बेटी शालीनी साढ़े 4 वर्ष की थी और छोटी बेटी रश्मि सवा सवा /डेढ़ वर्ष की ही थी।