टीएवीआर तकनीक से संभव हुआ गंभीर हृदय रोगियों का वॉल्व बदलना : डा. ऋषि गुप्ता

फरीदाबाद। दिल के मरीजों के लिए वॉल्व बदलना पहले एक बड़ी चुनौती होती थी, जिसके लिए सर्जरी जरूरी थी, लेकिन अब यह काम बिना सर्जरी ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) तकनीक के संभव हो गया है। यह कहना है सेक्टर-21ए स्थित एशियन अस्पताल के कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. ऋषि गुप्ता का। शहर के वरिष्ठ ह्दय रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋषि गुप्ता ने बताया कि अभी तक गंभीर मरीजों की ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती थी। जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है या जो ज्यादा दुबले पतले होते हैं। खासकर ऐसे मरीज जो ह्दय रोग के साथ के किडनी रोग, फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे मरीजों को ओपन हार्ट सर्जरी में एनिस्थीसिया देते समय काफी खतरा रहता है। मरीज के कोमा में जाने के साथ जान जाने का खतरा भी रहता है। ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट नामक तकनीक अमेरिका, यूरोप और जापान में काफी प्रचलित है। भारत में टीएवीआर तकनीक से सर्जरी कम की जाती है। फरीदाबाद में इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि टीएवीआर तकनीक का इस्तेमाल कर बिना ऑपरेशन किए हाल ही में एक मरीज के हार्ट का वॉल्व बदला है। एनआईटी 3 में रहने वाली जिस महिला का इलाज इस तकनीक से किया है, उनकी उम्र 68 साल थी और वजन 108 किलोग्राम है। साथ ही उनके फेफड़ों में भी दिक्कत थी, इसलिए सर्जरी न कर हमने इस तकनीक से उनके हार्ट का वॉल्व बदला। इस तकनीक से इलाज करने के बाद मरीज को 3 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। अब देश में ही इन वॉल्व का निर्माण होने लगा है। इससे कीमत में भी कमी आई है। हर इंसान के हार्ट में चार तरह के वाल्व होते हैं। जो कि ब्लड के हार्ट की ओर जाने पर खुलते और विपरीत दिशा में जाने पर बंद हो जाते हैं। वाल्व ये सुनिश्चित करते हैं कि खून उचित समय और दिशा में उचित बल के साथ पहुंच रहा है या नहीं। लेकिन जब ये वाल्व खराब हो जाते हैं तो ये संकुचित और कठोर होने की वजह से पूरी तरह खुल और बंद नहीं पाते हैं। हृदय वाल्व रोग की समस्या जन्म से, संक्रमण, हार्ट अटैक या फिर दिल को पहुंची किसी क्षति की वजह से हो सकती है। इसका मुख्य संकेत दिल की धडक़न से असाधारण ध्वनि का होना होता है। जिसे हार्ट मर्मर कहा जाता है।