श्री महारानी वैष्णो देवी मंदिर में रामनवमी पर उमडा भक्तों का सैलाब, अंतिम नवरात्रि पर हुई मां सिद्धिदात्री की पूजा

श्री महारानी वैष्णो देवी मंदिर में रामनवमी पर उमडा भक्तों का सैलाब, अंतिम नवरात्रि पर हुई मां सिद्धिदात्री की पूजा

सर्वप्रिय भारत/फरीदाबाद।

महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में रामनवमी पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड पड़ा, भगवान श्री राम और माता सिद्धिदात्री के दर्शनों के लिए सुबह से ही मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया . इस अवसर पर लोगों ने भगवान श्री राम और माता की पूजा अर्चना में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. रामनवमी के अवसर पर मंदिर में मां सिद्धिदात्री की भव्य पूजा अर्चना की गई. इस अवसर पर मंदिर में कंजकों को भी पूजा गया. मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने सभी श्रद्धालुओं को रामनवमी की शुभकामनाएं दी. इस शुभ अवसर पर मंदिर में हवन यज्ञ का भी आयोजन किया गया. जिसमें प्रसिद्ध उद्योगपति आर के बत्रा. सोनिया बत्रा, सुषमा कुमारी, करण राहुल, नेतराम,विमल और चंद्र ने हवन में अपनी आहुति डाली.
इस अवसर पर श्री भाटिया ने श्रद्धालुओं को माँ सिद्धिदात्री की कथा सुनाई और उनकी महिमा से अवगत करवाया.

श्री भाटिया ने बताया कि मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। 
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। 
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करें। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।
श्री भाटिया ने कहा कि मां के चरणों का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।

इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए। सच्चे मन और पूरी निष्ठा से मां सिद्धिदात्री की पूजा करने वाले वक्त की हर मनोकामना आवश्यक पूर्ण होती है